कोई हमारे शहर में रहगुज़र तो करे,
मुनादी बहुत हुई अब ख़बर तो करे।
कहने को तो बहुत हैं तरफदार अपने ,
कोई सही में दोस्ताना नज़र तो करे।
राहों में बहुत से मका़म आए भी गए भी
अब कोई कहीं सच में बसर तो करे।
हमसे हैं तुम्हारे हमराही कई -कई ,
अब कोई हम संग भी सफ़र तो करे।
नाराजगी बहुत हुई ग़ुरबत के लिए ,
अब कोई अंज़ाम-ए-सितमग़र तो करे।
कल्पना
मुनादी बहुत हुई अब ख़बर तो करे।
कहने को तो बहुत हैं तरफदार अपने ,
कोई सही में दोस्ताना नज़र तो करे।
राहों में बहुत से मका़म आए भी गए भी
अब कोई कहीं सच में बसर तो करे।
हमसे हैं तुम्हारे हमराही कई -कई ,
अब कोई हम संग भी सफ़र तो करे।
नाराजगी बहुत हुई ग़ुरबत के लिए ,
अब कोई अंज़ाम-ए-सितमग़र तो करे।
कल्पना
No comments:
Post a Comment