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दृष्टि
उथल-पुथल कर हृदय- मचा हलचल- चल रे चल- मेरे पागल बादल!
Saturday, February 19, 2022
Friday, March 9, 2018
माँ
माँ ओ माँ
समय की नदी में देखती हूँ प्रतिबिंब
झिलमिलाता है अक्स तुम्हारा ;;;;;
दिखता है चेहरा मेरा
तुम्हारे रूप में समा गया है
अक्स मेरा ______
वही तुम्हारी चिंताएँ
वही इच्छाएँ
मेरा झुंझलाना
तुम्हारा मनाना
( )
हमारे लिए
रात - रात भर जगना
अनवरत दौड़ना
#####
धीमे से टाँगना सपने
हमारी आँखों में
(अपने सपनों को भूलकर)
हमारी नजरों से नीला आकाश आँकना
अब मैं भी रात -रात भर
बुनती हूँ बच्चों के
ख्वाबों की चादर
"""""""""""""""""""""
पर जब भी तुम मेरे पास होती हो
मेरे सपने लौट आते हैं
मेरे बालमन के साथ
:::::::::::::::::::::::::::
कोई हठीली बच्ची
मेरे भीतर फिर
उतर आती है
सम्पूर्ण राग के साथ
समय की नदी में देखती हूँ प्रतिबिंब
झिलमिलाता है अक्स तुम्हारा ;;;;;
दिखता है चेहरा मेरा
तुम्हारे रूप में समा गया है
अक्स मेरा ______
वही तुम्हारी चिंताएँ
वही इच्छाएँ
मेरा झुंझलाना
तुम्हारा मनाना
( )
हमारे लिए
रात - रात भर जगना
अनवरत दौड़ना
#####
धीमे से टाँगना सपने
हमारी आँखों में
(अपने सपनों को भूलकर)
हमारी नजरों से नीला आकाश आँकना
अब मैं भी रात -रात भर
बुनती हूँ बच्चों के
ख्वाबों की चादर
"""""""""""""""""""""
पर जब भी तुम मेरे पास होती हो
मेरे सपने लौट आते हैं
मेरे बालमन के साथ
:::::::::::::::::::::::::::
कोई हठीली बच्ची
मेरे भीतर फिर
उतर आती है
सम्पूर्ण राग के साथ
कल्पना
Sunday, February 25, 2018
एक अजीब से बुखार से गुजर रहा है
से ज्यादा थिगलियाँ हैं
पवित्र धर्म स्थान करोड़ों लाशों के
गवाह हैं
पवित्र नदियाँ कंकालों का
रेला लिए।आतीं है
और समृद्धौं में
रेवडि़याँ बँट जातीं हैं
बाजार चमक रहे हैं
चेहरों से रौनक गायब है
और मुखौटे जिन्दा हैं
पर क्या हम आज भी
शर्मिंदा हैं ?
मेरा देश
किसानों के पाँवों पर प्रेमचंद के हाेरीसे ज्यादा थिगलियाँ हैं
पवित्र धर्म स्थान करोड़ों लाशों के
गवाह हैं
पवित्र नदियाँ कंकालों का
रेला लिए।आतीं है
और समृद्धौं में
रेवडि़याँ बँट जातीं हैं
बाजार चमक रहे हैं
चेहरों से रौनक गायब है
और मुखौटे जिन्दा हैं
पर क्या हम आज भी
शर्मिंदा हैं ?
कल्पना
Tuesday, February 13, 2018
एक मौत
वह अब नहीं है
क्या सोचा होगा उसने उस वक्त
जब खुद को पाया होगा
उन्मत्त भीड के बीचोंबीच
निहत्था!
याद आया होगा घर?
चूल्हे में मद्धिम आँच पर पकती अन्तिम रोटी
खेतों की तारबाड
बूढे माँ पिता
जरूरी कागजात
बच्चे का परीक्षाफल
आने वाली सालगिरह
चमकती संगीने लिये
खूँख्वार हो चुके
भयानक दाँत और पंजे निकाले
खूनी चेहरों को क्या एक पल के लिये भी
आया होगा याद
ईश्वर, अल्लाह. यीशू या धर्मग्रन्थ
लालसाओं की अनेक घुमावदार सीढियों के बीच चलते हुए
घूमती दुनिया के चक्के में चल रही हैं गुनह्गार साँसें
कत्ल का मन्जर पेश है
तकलीफ है उन्माद है
अव्यक्त सा अवसाद है
और हम हैं अपने आदर्शों के आवरणों को
उधड्ते देख्नने को अभिशप्त
इस भयानक मन्जर को कैसे करूँ मैं व्यक्त
कि हम अभी भी अपनी- अपनी चाहरदीवारियाँ
दुरुस्त कर रहे हैं
Wednesday, January 24, 2018
बसंत
मैंने नहीं लिखा बसंत
पर जिया
काश!
सब
पायें
जी जाएँ बसंत!
न तेरा न मेरा
गली-गली
आँगन -आँगन
कुहुके बसंत
बच्चे मुस्कायें
खिल जाएँ
रोटी
पानी
भी लाए
बसंत!
अब ऐसा हंसता बसता आए
बसंत
पर जिया
काश!
सब
पायें
जी जाएँ बसंत!
न तेरा न मेरा
गली-गली
आँगन -आँगन
कुहुके बसंत
बच्चे मुस्कायें
खिल जाएँ
रोटी
पानी
भी लाए
बसंत!
अब ऐसा हंसता बसता आए
बसंत
Sunday, January 21, 2018
बड़े होते बच्चे
बार-बार सवाल करते हैं बड़े होते बच्चे
गलत , सही का तत्काल फैसला माँगते हैं
वे नहीं समझते कि ये कोई बच्चों का खेल नहीं है
यहाँ कानून बंदी है चंद रसूखदारों की जेब मे
जब वे बड़े हो जाएंगे तो जानेंगे
कि कई निर्दोष
उन
खामोश वहशी गलियारों में निर्णय की इंतजारी में साँसों को छोड़ बैठे हैं ,
वे तब जानेंगे कि सत्य न्याय सब धोखा है
और चीख एक काले पहाड़ से टकरा-टकरा कर रेगिस्तान में दम तोड़ देती है
वे समझेंगे कि न्याय और सिक्कों की खनक में गहरा रिश्ता है
और चुप रहना सीख जाएँगे!
ठीक मेरी तुम्हारी तरह-----------
Friday, January 12, 2018
दरख़्वास्त
कोई हमारे शहर में रहगुज़र तो करे,
मुनादी बहुत हुई अब ख़बर तो करे।
कहने को तो बहुत हैं तरफदार अपने ,
कोई सही में दोस्ताना नज़र तो करे।
राहों में बहुत से मका़म आए भी गए भी
अब कोई कहीं सच में बसर तो करे।
हमसे हैं तुम्हारे हमराही कई -कई ,
अब कोई हम संग भी सफ़र तो करे।
नाराजगी बहुत हुई ग़ुरबत के लिए ,
अब कोई अंज़ाम-ए-सितमग़र तो करे।
कल्पना
मुनादी बहुत हुई अब ख़बर तो करे।
कहने को तो बहुत हैं तरफदार अपने ,
कोई सही में दोस्ताना नज़र तो करे।
राहों में बहुत से मका़म आए भी गए भी
अब कोई कहीं सच में बसर तो करे।
हमसे हैं तुम्हारे हमराही कई -कई ,
अब कोई हम संग भी सफ़र तो करे।
नाराजगी बहुत हुई ग़ुरबत के लिए ,
अब कोई अंज़ाम-ए-सितमग़र तो करे।
कल्पना
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